दग़ा करो दग़ा करो

(नहीं तो हमारा बेनाम अल्लाह बिल्कुल बेज़ार हो जाएगा!)
लेखक : भाई. हरि

मुसल्मान आज कल दावा करने लगे हैं कि इस्लाम में दग़ा या धोखा नहीं है। और यह भी कहकर गैर मुसल्मानों को अपने जाल में लेने की लाख कोशिश कर रहें हैं कि इस्लाम एक अमन पसन्द मज़हब (शांतिप्रिय धर्म) है। क्या यह सच है? या उनकी इन बातों में भी कोई धोखा और फ़रेब हैं? हम इस छोटी सी रचना में यह पढ़ेंगे कि इस्लाम के विद्वान और शिक्षक उनके मदरसों में उनके बच्छों को और छात्रों को क्या तालीम दे रहें हैं।

आइए हम क़ुर‍आ़न में से एक आयत पढ़ें, और उसके बाद उसकी टीका भी पढ़ें जिसे उनके विद्वान उनके मदरसों में अपने छात्रों को सिखाते हैं। (मौलाना अबुल अ़ला मौदूदी की तफ़हीम उल क़ुर‍आन में से आले इम्रान 3:28 का अनुवाद और उसकी टीका)

अनुवाद :-

“मोमिनीन अहल-ए-ईमान (मुसल्मान) को छोड़कर काफ़िरों को अपना रफ़ीक़ (साथी) और दोस्त हरगिज़ न बनाएँ। जो ऐसा करेगा उसका अल्लाह से कोई त‍अल्लुक़ (संबंध) नहीं। हाँ यह मुआफ़ है कि तुम उनके ज़ुल्म से बचने केलिये बज़ाहिर (बाह्य रूप से) ऐसा तर्ज़-ए-अमल (व्यवहार) इख़्तियार कर जाओ। मगर अल्लाह तुम्हें अपने आप से डराता है और तुम्हें उसी की तरफ़ पलट कर जाना है”। यानी अगर कोई मोमिन (विश्वासी) किसी दुश्मन-ए-इस्लाम जमाअत (समाज) के चंगुल (पकड़) में फँस गया हो, और उसे उनके ज़ुल्म-ओ-सितम (अत्याचार और क्रूरता) का खौफ़ (डर) हो, तो उस को इजाज़त है कि अपने ईमान को छुपाए रखे और कफ़्फ़ार (अविश्वासियों) के साथ बज़ाहिर उस तरह रहे, कि गोया (मानो) उन्हीं में का एक आदमी है। या अगर उसका मुसल्मान होना ज़ाहिर हो गया हो, तो अपनी जान बचाने के लिए वह कफ़्फ़ार (अविश्वासियों) के साथ दोस्ताना रवय्यह का इज़हार कर सकता है। हत्ता कि (जब तक) शदीद खौफ़ की हालत में जो शख़्स बर्दाश्त की ताक़त न रखता हो, उस को कलिमा-ए-कुफ़्र (अल्लाह की निन्दा के शब्द) तक कह जाने की रुख़सत (अनुमति) है।

टीका :-

यानी अगर कोई मोमिन (विश्वासी) किसी दुश्मन-ए-इस्लाम जमाअत (समाज) के चंगुल (पकड़) में फँस गया हो, और उसे उनके ज़ुल्म-ओ-सितम (अत्याचार और क्रूरता) का खौफ़ (डर) हो, तो उस को इजाज़त है कि अपने ईमान को छुपाए रखे और कफ़्फ़ार (अविश्वासियों) के साथ बज़ाहिर उस तरह रहे, कि गोया (मानो) उन्हीं में का एक आदमी है। या अगर उसका मुसल्मान होना ज़ाहिर हो गया हो, तो अपनी जान बचाने के लिए वह कफ़्फ़ार (अविश्वासियों) के साथ दोस्ताना रवय्यह का इज़हार कर सकता है। हत्ता कि (जब तक) शदीद खौफ़ की हालत में जो शख़्स बर्दाश्त की ताक़त न रखता हो, उस को कलिमा-ए-कुफ़्र (अल्लाह की निन्दा के शब्द) तक कह जाने की रुख़सत (अनुमति) है।

विश्वप्रसिद्ध तफ़सीर इब्न कतीर में से :-

कफ़्फ़ार से तर्क-ए-मोआलात (सहाय निराकरण) :-

यहाँ अल्लाह तर्क-ए-मोआलात (सहाय निराकरण) का हुक्म देता है कि मुसल्मानों को लाइक नहीं कि कफ़्फ़ार से दोस्तियाँ और मुहब्बतें करें। उन्हें आपस में ईमान्दारों से मेल मिलाप और मुहब्बत रखनी चाहिए। फिर हुक्म सुनाता है कि जो ऐसा करेगा उससे अल्लाह बिल्कुल बेज़ार हो जाएगा, जैसे और जगह है “मुसल्मानो! मेरे और अपने दुश्मनों से दोस्ती न करो”। और जगह फ़रमाया - “मोमिनो! यह यहूदी, नसारी आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं। तुम में से जो उन में से दोस्ती करे, वह उन ही में से है।” और जगह परवरदिगार आलिम ने मुहाजिर (शरणार्थी) अनसार और दूसरे मोमिनों के भाईचारा का ज़िक्र करके फ़रमाया है कि काफ़िर आपस में एक दूसरे के मुहिब्ब-ओ-महबूब (दोस्त और प्रेमी) हैं। तुम अगर ऐसा न करोगे तो ज़मीन में फ़ित्ना (मुसीबत) फैल जाएगा और ज़बरदस्त फ़साद (अशांति) बरपा हो पड़ेगा। पर उन लोगों को रुख़सत दी जो किसी शहर में किसी वक़्त उनकी बदी और उनकी बुराई से ड़रकर दफ़-उल-वक़्ती के तौर पर (वक़्त गुज़ारने केलिए) बज़ाहिर कुछ मेल मिलाप ज़ाहिर कर दें, लेकिन दिल में उनकी तरफ़ रग़्बत (पसंद / झुकाव) और उन से हक़ीक़ी मुहब्बत न हो, जैसे सहीह बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अबू दर्दा से मरवी (कथिथ) है कि - हम बाज़ क़ौमों से कुशादह पेशानी (उदारता) से मिलते हैं, लेकिन हमारे दिल उन पर ल‍अ़नत (श्राप) भेजते रहते हैं। हज़रत इब्न अब्बास फ़रमाते हैं कि सिर्फ़ ज़ुबान से इज़हार करे लेकिन अ़मल में उनका साथ ऐसे वक़्त भी हर गिज़ न दे। यही बात और मुफ़स्सिरीन (टीकाकार) से भी मरवी (कथिथ) है और उसी की ताईद (समर्थन) अल्लाह ताला का यह फ़र्मान भी करता है - जो शख़्स अपने ईमान के बाद अल्लाह ताला से कुफ़्र करे सिवाए उसके जिन पर ज़बरदस्ती की जाए और दिल उसका ईमान के साथ मुतमइन (संतुष्ट) हो। (सहीह) बुख़ारी में है कि हज़रत हसन फ़रमाते हैं कि यह हुक्म कियामत (प्रलय का दिन) तक केलिए है।

फिर फ़रमाया - अल्लाह ताला तुम्हें अपने आप से ड़राता है, यानी दबद्बे (भय / प्रताप) और अपने अ़ज़ाबों से उस शख़्स को ख़बरदार किये देता है जो उसके फ़रमान की मुख़ालिफ़त (विरोध) करके उसके दुश्मनों से दोस्तियाँ रखे और उसके दोस्तों से दुश्मनी करे। फिर फ़रमाया - अल्लाह ही की तरफ़ लौटना है, हर आ़मिल को उसका अ़मल का बदला वहीं मिलेगा। हज़रत मुआज़ ने खड़े होकर फ़रमाया, ऐ बनी ऊद! मैं अल्लह ताला के रसूल का क़ासिद (दूत) होकर तुम्हारी तरफ़ आया हूँ। जान लो कि अल्लाह ही की तरफ़ फिरकर सब को जाना है फिर या तो जन्नत (स्वर्ग) ठिकाना होगा या जहन्नुम (नरक)। 

अब हम संक्षेप में देखेंगे कि हम ने अब तक ऊपर क्या क्या पढ़ा है।

1. काफ़िरों को अपना रफ़ीक़ (साथी) और दोस्त हरगिज़ न बनाएँ।
2. बचने केलिये बज़ाहिर (बाह्य रूप से) ऐसा तर्ज़-ए-अमल (व्यवहार) इख़्तियार कर जाओ।
3. ईमान को छुपाए रखे।
4. बज़ाहिर उस तरह रहे, कि गोया (मानो) उन्ही में का एक आदमी है।
5. कफ़्फ़ार (अविश्वासियों) के साथ दोस्ताना रवय्यह का इज़हार कर सकता है।
6. कलिमा-ए-कुफ़्र (अल्लाह की निन्दा के शब्द) तक कह जाने की रुख़सत (अनुमति) है।
7. लाइक नहीं कि कफ़्फ़ार से दोस्तियाँ और मुहब्बतें करें।
8. अल्लाह बिल्कुल बेज़ार हो जाएगा।
9. दफ़-उल-वक़्ती के तौर पर (वक़्त गुज़ारने केलिए) बज़ाहिर कुछ मेल मिलाप ज़ाहिर कर दें, लेकिन दिल में उनकी तरफ़ रग़्बत (पसंद / झुकाव) और उन से हक़ीक़ी मुहब्बत न हो।
10. हम बाज़ क़ौमों से कुशादह पेशानी (उदारता) से मिलते हैं, लेकिन हमारे दिल उन पर ल‍अ़नत (श्राप) भेजते रहते हैं।
11. सिर्फ़ ज़ुबान से इज़हार करें।

इस तरह दूसरों को धोखा देकर इस्लाम की जीत के लिए फ़रेब खिलानेवाले इस तरीक़े को इस्लामी न्यायशास्त्र में तक़िय्यह  कहते हैं। और इस तरह की नमक हरामी इस्लाम मे जायज़ है।

आइये हम कुछ उदाहरण देखें -

1. जब एक मुसल्मान कहता है कि इस्लाम एक शान्ति प्रिय धर्म है और सभी से मेल मिलाप करने को बताती है तो वह इस तक़िय्यह का प्रयोग कर रहा है।
2. जब मुसल्मान लोग गैर मुसल्मानों से प्रेम से व्यवहार करते हैं तो ज़रूर इस तकिय्यह के अनुसार करते हैं, और उन के दिल में से तो श्राप भेजते रहते हैं।
3. आपका मुसल्मान दोस्त आप से इस तक़िय्यह के मुताबिक़ एक दिन धोखा देनेवाली दोस्ती ही कर रहा है। क्योंकि अगर वह सच में आप से दोस्ती करता है तो वह असली मुसल्मान नहीं ठहरता और अल्लाह उस से बिल्कुल बेज़ार हो जाएगा।
4. अगर लशकर या सेना में कोई मुसल्मान रहा, और अगर बैरी की सेना मुसल्मानी हो तो वह ज़रूर हमारे ख़िलाफ़ हो सकता है, क्योंकि उसे अल्लाह की बातें सुननी होंगी; नहीं तो अल्लाह उस से बिल्कुल बेज़ार हो जाएगा।
5. अगर कोई मुसल्मान गैर मुसल्मानों का धर्म अपनाए, फिर भी उसे रहस्य मुस्लिम होकर, बाद में तक़िय्यह के अनुसार धोखा देना पड़ेगा। नहीं तो अल्लाह उस से बिल्कुल बेज़ार हो जाएगा।
6. अगर आप किसी भिखारी मुसल्मान को अपना सब कुछ देकर उसकी निहायत गरीब हालत में से अमीर बनाएँ, फिर भी वह आप से प्रेम नहीँ करेगा, क्योंकि ऐसा करने से अल्लाह उस से बिल्कुल बेज़ार हो जाएगा।
7. इस प्रकार इस्लामी दुनिया में ग़ैर मुसल्मानों के साथ विश्वास योग्य रहनेवाले मुसल्मान बिल्कुल नहीं रहते। अगर कोई  ऐसा है तो वह  हक़ीक़ी या सच्चा मुसल्मान नहीं है, या तो ज़रूर तक़िय्ये का प्रयोग कर रहा है। और जब उसे मौका मिले तो उसे ज़रूर हमें धोखा देना पड़ता है। नहीं तो अल्लाह उस से बिल्कुल बेज़ार हो जाएगा।

अब हमें साफ़ साफ़ पता चला है कि इस्लाम में कितना फ़रेब, धोखा और छल है। इस तरह की नमक हरामी और धोखा सिर्फ़ शैतान का लक्षण है। लेकिन मुसल्मान तो मानते हैं कि यह अल्लाह या खुदा का लक्षण है। लोगों से फ़रेब की बातें कहकर धोखे में ढकेलना आदि से शैतान का काम है। आइये हम देखें कि बाग़-ए-अदन में शैतान ने साँप के रूप में स्त्री को हमेशा के धोखे में किस तरह ढकेल दिया।

“यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, उसने स्त्री से कहा, “क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, ‘तुम इस वाटिका के किसी वृझ का फल न खाना’?” स्त्री ने सर्प से कहा, “इस वाटिका के वृझों के फल हम खा सकते हैं; पर जो वृझ वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे”। तब सर्प ने स्त्री से कहा, “तुम निश्चय न मरोगे! वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे”।” (उत्पत्ति 3:1-5)

अल्लाह के विपरीत हक़ीक़ी परमेश्वर यहोवाह उस धोखेबाज आदमी से नफ़रत करता है जो धोखा और छल से भरा हुआ है :-

“उनको उपद्रव का गर्भ रहता, और वे अनर्थ को जन्म देते हैं : और वे अपने अन्त:करण में छल की बातें गढ़ते हैं।” (अय्यूब 15:35)

“तू उनको जो झूठ बोलते हैं नाश करेगा; यहोवा तो हत्यारे और छली मनुष्य से घृणा करता है।” (भजन संहिता 5:6)

“छ: वस्तुओं से यहोवा बैर रखता है, वरन सात हैं जिन से उसको धृणा है : अर्थात्‌ घमण्ड से चढ़ी हुई आँखें, झूठ बोलनेवाली जीभ, और निर्दोष का लहू बहानेवाले हाथ, अनर्य कल्पना गढ़नेवाला मन, बुराई करने को वेग दौड़नेवाले पाँव,” (नीतिवचन 6:16,17,18)

हक़ीक़ी परमेश्वर यहोवाह के हक़ीक़ी नबियों और विश्वासियों की चाहत :-

“मैं यह कहता हूँ कि मेरे मुँह से कोई कुटिल बात न निकलेगी, और न मैं कपट की बातें बोलूँगा।” (अय्यूब 27:4)

“हे परमेश्वर, मेरा न्याय चुका और विधर्मी जाति से मेरा मुक़द्दमा लड़; मुझ को छली और कुटिल पुरुष से बचा।” (भजन संहिता 43:1)

“हे यहोवा, झूठ बोलनेवाले मुँह से और छली जीभ से मेरी रक्षा कर।” (भजन संहिता 120:2)

“इससे मैं आप भी यत्न करता हूँ कि परमेश्वर की, और मनुष्यों की ओर मेरा विवेक (या कान्शन्स) सदा निर्दोष रहे।” (प्रेरितों 24:16)

“परन्‍तु हम ने लज्जा के गुप्‍त कामों को त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं; परन्‍तु सत्य को प्रगट करके, परमेश्वर के सामने हर एक मनुष्य के विवेक (या कान्शन्स) में अपनी भलाई बैठाते हैं (2 कुरिन्थियों 4:2)

“क्‍योंकि हमारा उपदेश न भ्रम से है और न अशुद्धता से, और न छल के साय है।” (1 थिस्सलुनीकियों 2:3)

छेले इन्सान परमेश्वर की रोशनी में नहीं परन्तु शैतान की घोर अन्धकार में है :-

“उसका मुँह शाप और छल और अन्धेर से भरा है; उत्पात और अनर्थ की बातें उसके मुँह में हैं।” (भजन संहिता 10:7)

“पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अन्‍धकार में है और अन्‍धकार में चलता है, और नहीं जानता कि कहाँ जाता है, क्‍योंकि अन्‍धकार ने उसकी आँखें अन्‍धी कर दी हैं।” (1 यूहन्ना 2:11)

अल्लाह के विपरीत हक़ीक़ी परमेश्वर यहोवाह किसे पसंद करते हैं :-

“जिसके काम निर्दोष और हृदय शुद्ध है, जिसने अपने मन को व्यर्थ बात की ओर नहीं लगाया, और न कपट से शपथ खाई है।” (भजन संहिता 24:4)

“क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो।” (भजन संहिता 32:2)

जो छल करता है वह मेरे घर के भीतर न रहने पाएगा; जो झूठ बोलता है वह मेरे साम्हने बना न रहेगा।” (भजन संहिता 101:7) (लेकिन अल्लाह छले इन्सानों को ही अपनी जन्नत या स्वर्ग देता है।)

झूठों से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु जो विश्वास से काम करते हैं, उन से वह प्रसन्न होता है।” (नीतिवचन 12:22)

छले / कुटिल इन्सानों के लक्षण जिन्हें बाईबल के हक़ीक़ी परमेश्वर यहोवा घृणा करते हैं :-

“क्योंकि वे मेल की बातें नहीं बोलते, परन्तु देश में जो शान्तिपूर्वक रहते हैं, उनके विरुद्ध छल की कल्पनाएँ करते हैं।” (भजन संहिता 35:20)

“कुकर्मियों के कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालों के विषय डाह न कर !” (भजन संहिता 37:1)

“क्योंकि वे बुराई ही करने को दौड़ते हैं, और हत्या करने को फुर्ती करते हैं।” (नीतिवचन 1:16)

“धमिर्यों की कल्पनाएँ न्याय ही की होती हैं, परन्तु दुष्टों की युक्तियाँ छल की हैं।” (नीतिवचन 12:5) (हमारे हक़ीक़ी खुदावन्द यहोवा के  इस मुक़द्दस कलाम के अनुसार छल करनेवाले सारे मुसल्मान और उनका बेनाम अल्लाह दुष्ट हैं।)

“जो बैरी बात से तो अपने को भोला बनाता है, परन्तु अपने भीतर छल रखता है।” (नीतिवचन 26:24)

“वे बुराई करने को दौड़ते हैं, और निर्दोष की हत्या करने को तत्पर रहते हैं; उनकी युक्तियाँ व्यर्थ हैं, उजाड़ और विनाश ही उनके मार्गों में हैं।” (यशायाह 59:7)

“वे एक दूसरे को ठगेंगे और सच नहीं बोलेंगे; उन्होंने झूठ ही बोलना सीखा है; और कुटिलता ही में परिश्र्म करते हैं।” (यिर्मयाह 9:5)

छल ही के कारण वे मेरा ज्ञान नहीं चाहते, यहोवा की यही वाणी है।” (यिर्मयाह 9:6) (जो छल का चलन चलते हैं वे सच्चे परमेश्वर यहोवा का ज्ञान नहीं रखते हैं।)

“उनकी जीभ काल के तीर के समान बेधनेवाली है, उस से छल की बातें निकलती हैं; वे मुँह से तो एक दूसरे से मेल की बात बोलते हैं पर मन ही मन एक दूसरे की घात में लगे रहते हैं।” (यिर्मयाह 9:8)

“यदि कोई कहे, “मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूँ,” और अपने भाई से बैर रखे तो वह झूठा है; क्‍योंकि जो अपने भाई से जिसे उसने देखा है प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा प्रेम नहीं रख सकता।” (1 यूहन्ना 4:20)

“इसलिये वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्‍टता, और लोभ, और बैरभाव से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर।” (रोमोयों 1:29) (ये लक्षण उनके हैं जो हक़ीक़ी खुदा यहोवा को नहीं जानते।)

“उनका गला खुली हुई कब्र है, उन्‍होंने अपनी जीभों से छल किया है, उनके होठों में साँपों का विष है।” (रोमोयों 3:13)

“क्‍योंकि ऐसे लोग हमारे प्रभु मसीह की नहीं, परन्‍तु अपने पेट की सेवा करते है; और चिकनी चुपड़ी बातों से सीधे-सादे मन के लोगों को बहका देते हैं।” (रोमोयों 16:18)

अल्लाह के विपरीत परमेश्वर यहोवाह की हिदायत या निर्देश क्या है :-

“उपद्रवी पुरुष के विषय में डाह न करना, न उसकी सी चाल चलना;” (नीतिवचन 3:31)

“बे सबब अपने हमसाया के ख़िलाफ़ गवाही न देना, और अपने लबों से फ़रेब न देना।” (नीतिवचन 24:28)

छले और कुटिल इन्सान का भविष्य क्या है?

अल्लाह तो उन्हें जन्नत या स्वर्ग वादा करता है लेकिन हक़ीक़ी परमेश्वर तो सज़ा और दंड वादा करते हैं।

“वह राख खाता है; भरमाई हुई बुद्धि (फ़रेब) के कारण वह भटकाया गया है और वह न अपने को बचा सकता और न यह कह सकता है,“क्या मेरे दहिने हाथ में मिथ्या नहीं”?” (यशायाह 44:20)

“और नाश होनेवालों के लिये अधर्म के सब प्रकार के धोखे के साथ होगा? क्‍योंकि उन्‍होंने सत्य से प्रेम नहीं किया जिस से उनका उद्धार होता।” (2 थिस्सलुनीकियों 2:10)

“जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है; और तुम जानते हो कि किसी हत्यारे में अनन्‍त जीवन नहीं रहता।” (1 यूहन्ना 3:15)

“डाह, मलवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इनके जैसे और-और काम हैं, इनके विषय में मैं तुम से पहिले से कह देता हूँ जैसा पहिले कह भी चुका हूँ, कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।” (गलातियों 5:21)

“परन्तु दुष्‍ट और बहकानेवाले धोखा देते हुए और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएँगे।” (2 तीमुथियुस 3:13)

यीशु मसीह के मुनफ़रिद मेयार (अद्वितीय मानक) :-

“उसकी कब्र भी दुष्टों के संग ठहराई गई, और मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ, यद्यपि उसने किसी प्रकार का अपद्रव न किया या और उसके मुँह से कभी छल की बात नहीं निकली यी।” (यशायाह 53:9)

हक़ीक़ी परमेश्वर यहोवाह फ़रेब और धोके का क्या कारण बताते हैं?

मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?” (यिर्मयाह 17:9)

“क्‍योंकि भीतर से, अर्थात मनुष्य के मन से, बुरे बुरे विचार व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्‍टता, छल, लुचपन, कुदृष्‍टि, निन्‍दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।” (मरकुस 7:21-23)

“परन्‍तु आत्मा स्‍पष्‍टता से कहता है कि आनेवाले समयों में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्‍टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएँगे।” (1 तीमुथियुस 4:1)

मसीह का असली तालीम (शिक्षण) :-

''परन्‍तु मैं तुमसे यह कहता हूँ कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना करो।” (मत्ती 5:44)

“तू आज्ञाओं को तो जानता है : ‘हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, छल न करना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’।” (मरकुस 10:19)

जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साय करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।” (लूका 6:31)

“प्रेम निष्‍कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो।” (रोमियों 12:9)

“बुराई से न हारो, परन्‍तु भलाई से बुराई को जीत लो।” (रोमियों 12:21)

“जैसा दिन को शोभा देता है, वैसा ही हम सीधी चाल चलें, न कि लीला-क्रीड़ा और पियक्कड़पन में, न व्यभिचार, और लुचपन में, और न झगड़े और डाह में।” (रोमियों 13:13)

“इसलिये, हे भाइयो, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, अर्थात जो भी सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं उन पर ध्यान लगाया करो।” (फ़िलिप्पियों 4:8)

सब प्रकार की बुराई से बचे रहो।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:22)

“इसलिये सब प्रकार का बैरभाव और छल और कपट और डाह और निन्दा को दूर करके।” (1 पतरस 2:1)

छेले इन्सान शारीरिक रीति से जीनेवाला है बल्कि आत्मिक रीति से नहीं जिससे परमेश्वर ख़ुश होते हैं।

“क्‍योंकि हम भी पहिले निर्बुद्धि, और आज्ञा न माननेवाले, और भ्रम में पड़े हुए और विभिन्न प्रकार की अभिलाषाओं और सुखविलास के दासत्‍व में थे, और बैरभाव, और डाह करने में जीवन व्यतीत करते थे, और घृणित थे, और एक दूसरे से बैर रखते थे।” (तीतुस 3:3)

“क्‍योंकि अब तक शारीरिक हो। इसलिये कि जब तुम में डाह और झगड़ा है, तो क्‍या तुम शारीरिक नहीं? और क्या मनुष्य की रीति पर नहीं चलते?” (1 कुरिन्थियों 3:3)

शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्यात व्यभिचार, गन्‍दे काम, लुचपन, मूर्तिपूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा और इनके जैसे और-और काम हैं, इनके विषय में मैं तुम को पहिले से कह देता हूँ जैसा पहिले कह भी चुका हूँ, कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।” (गलातियों 5:19-21)

झूठे नबी मुहम्मदे के विपरीत हमारे बेमिसाल हक़ीक़ी मसीह कैसे थे?

“जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं।” (2 कुरिन्थियों 5:21)

“न तो उसने पाप किया और न उसके मुँह से छल की कोई बात निकली।” (1 पतरस 2:22)

वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुँह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय और भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुँह न खोला।” (यशायाह 53:7)

आइये अब हम यह देखें कि इस दुनुयावालों ने भी बुराई के बारे में क्या कहा है।

बुरे विचारों से मुक्त रहना परमेश्वर का सबसे अच्छा उपहार है।” - एस्खिलास (Aeschylus) (प्राचीन ग्रीक त्रासदी के पिता)

धार्मिक विश्वास के कारण छोड़कर लोग कभी भी बुराई को पूरी तरह और ख़ुशी से नहीं करते हैँ।” (पास्कल) (Pascal) (फ्रांसीसी गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी, आविष्कारक, लेखक)

बुराई सम्पूर्ण सृष्टि के साथ एक विरोध है।” - (ज्शाक्क) (Zschokke) (जर्मन लेखक और सुधारक)

मुसल्मानों की भयंकर और खराब हालत का बयान :-

मुसल्मान लोग एक दलदले में फसे हुए हैं जिस का नाम है इस्लाम; और इस के बाहर वे अपने आप नहीं आ सकते।

“परन्‍तु यदि तेरी आँख बुरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अन्‍धियारा होगा; इस कारण वह उजियाला जो तुझ में है यदि अन्‍धकार हो तो वह अन्‍धकार कैसा बड़ा होगा !” (मत्ती 6:23)

यानी वह कलाम जिसे आप खु़दा की तरफ़ से आया हुआ नूर या उजियाला मानते हैं, अगर वह अन्‍धकार और फ़रेब है, तो वह अन्‍धकार कैसा या कितना बड़ा होगा? क्योंकि उस अन्‍धकार का कलाम को लोग अनजाने में ड़र के मारे ख़ुदा का कलाम मानते हैं। इतनी फ़रेब से लोगों को फ़रेबी बेनाम अल्लाह नहीं बल्कि हक़ीक़ी खुदा यहोवाह ही बचा सकत्ते हैं।

1. शैतान ने साँप के रूप में आकर बाग़-ए-अदन में स्त्री को फ़रेब खिलाया, पर आज वह झूठे नबियों के पास नूरानी फ़रिश्ता बनकर आया है और उनके माध्यम से सारे लोगों को फ़रेब खिलाना चाहता है जो उन झूठे नबियों का अनुसरण करते हैं।

2. शैतान ने बाग़-ए-अदन में स्त्री से कहा कि उस वृझ का फल खाने के बाद भी “तुम निश्चय न मरोगे! वरन..... उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम.....ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे”। पर अब शैतान बेनाम अल्लाह के रूप में अपने झूठे नबियों के ज़रिये दुनिया से यह कहता है कि, “तुम मेरे नाम से ग़ैर मुसल्मानों पर श्राप भेजो, धोखा करो और फ़रेब खिलाओ और मैं तुम्हें उस हक़ीक़ी परमेश्वर येहोवा की नाई दण्ड नहीं बल्कि मेरा विलासमय जन्नत दूँगा।

आइये हम कक़ीक़ी अल्लाह यहोवाह की किताब-ए-मुक़द्दस (पवित्र पुस्तक) में से देखें कि उसके राज्य में प्रवेश करने वालों को कैसा रहना चाहिए।

“मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई परमश्वर के राज्य को बालक के समान ग्रहण न करेगा वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।” (लूका 18:17)

यहाँ हम पढ़ रहे हैं कि अगर हमें परमेश्वर के राज्य में सच में प्रवेश करना हो तो हमें छल से भरा हुआ नहीं बल्कि एक छोटे बालक की नाई पाप रहित रहना चाहिए। अल्लाह यहोवाह अपनी हक़ीक़त को पहचानने के लिए आपकी रूहानी आँखें खोले।

प्रिय भाई बहिन, आप भी यह मानते हैं क्या कि दूसरों पर श्राप भेजने से, धोखा देने से और फ़रेब खिलाने से आप परमेश्वर के पास पहुँचेंगे? बिल्कुल नहीं। आप क़ुरआन के बेनाम अल्लाह के हाथ धोखा मत खाइये। अगर आप हक़ीक़ी अल्लाह (परमेश्वर) यहोवा पर और उसकी पवित्र पुस्तक बाइबिल पर विश्वास  करेंगे तो बुराई से बचकर परमेश्वर के पवित्र राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। हक़ीक़ी परमेश्वर यहोवा आप को अपनी हिदायत और मार्गदर्शन प्रदान करे। आमीन।


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